पेसा एक्ट  के तहत शासकीय या सामुदायिक भूमि के उपयोग में बदलाव से पहले ग्राम सभा की अनुमति अनिवार्य है, पर शासन ने प्रस्तावों को मानने से इनकार किया, अब कोर्ट का सहारा

बैतूल । मध्य प्रदेश में पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र विस्तार) अधिनियम (पेसा) लागू हुए दो वर्ष पूरे हो चुके हैं। प्रदेश के 20 जिलों के 89 आदिवासी ब्लॉक में लागू इस अधिनियम का उद्देश्य है आदिवासी समुदायों को उनकी ग्राम सभाओं के माध्यम से जल, जंगल और जमीन पर स्वशासन के अधिकार प्रदान करना। इस एक्ट के तहत आदिवासी ग्राम सभाओं को बड़े अधिकार मिले हैं, जिनमें से कुछ सांसद-विधायकों से भी अधिक माने जाते हैं।

बैतूल जिले में पेसा ग्राम सभा द्वारा अधिकारियों के फैसले पलटे गए; शाहपुर तहसील में नगर परिषद को ट्रेचिंग ग्राउंड के लिए और बैतूल में पर्यटन निगम को रिसोर्ट के लिए जमीन आवंटित किए जाने पर ग्राम सभा ने विरोध में प्रस्ताव पारित किया। प्रशासन द्वारा इन प्रस्तावों को अस्वीकार करने के बाद ग्राम सभाएं न्याय के लिए हाईकोर्ट पहुंच गईं। ग्राम सभा अध्यक्षों का कहना है कि अधिकारियों ने प्रस्तावों को मानने से इनकार कर दिया, जिससे उन्हें कोर्ट का सहारा लेना पड़ा।

कलेक्टर का कहना है कि कुछ पंचायतों ने नीतियों के विरोध में प्रस्ताव पारित किए हैं, जिनमें पेसा एक्ट का उल्लंघन नहीं है। उदाहरण के तौर पर, बैतूल के डेंडुपुरा गांव में 31 मई 2024 को कलेक्टर न्यायालय ने पर्यटन निगम को 5 हेक्टेयर भूमि हस्तांतरित की। ग्राम सभा ने कलेक्टर के आदेश को निरस्त करने का प्रस्ताव पास किया, लेकिन इसे प्रशासन ने मान्यता नहीं दी।

पेसा एक्ट का उद्देश्य आदिवासी स्वशासन को सुनिश्चित करना है। इसके तहत शासकीय या सामुदायिक भूमि के उपयोग में बदलाव से पहले ग्राम सभा की अनुमति अनिवार्य है। किसी भी परियोजना के लिए अधिसूचित क्षेत्रों में बिना ग्रामसभा की अनुमति के जमीन अधिग्रहण संभव नहीं है।

जनजाति मंत्रणा परिषद और पेसा टास्क फोर्स के सदस्य कालू सिंह मुजाल्दे का कहना है कि पेसा ग्राम सभाओं के फैसले नहीं माने जाने पर वे इसे सीएम और राज्यपाल के सामने रखेंगे।

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