मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, जबलपुर में
माननीय श्री न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी के समक्ष
दिनांक: 11 दिसम्बर 2024

रिट याचिका क्र.: 24004/2024
माधव सिंह तोमर बनाम मध्य प्रदेश शासन एवं अन्य

उपस्थिति:
याचिकाकर्ता की ओर से श्री आर.बी. तिवारी, अधिवक्ता।
प्रत्युत्तरकर्ता/राज्य की ओर से श्री अमित सेठ, अतिरिक्त महाधिवक्ता एवं श्री गिरीश केकरे, सरकारी अधिवक्ता।

आदेश:

याचिकाकर्ता के अधिवक्ता द्वारा इस याचिका के माध्यम से दिनांक 20.10.2022 (परिशिष्ट P/1) एवं 26.07.2024 (परिशिष्ट P/5) को उपमंडल अधिकारी एवं कलेक्टर, जिला छतरपुर द्वारा पारित आदेशों को चुनौती दी गई है।

2. यह आरोप है कि याचिकाकर्ता ने पटवारी के रूप में कार्य करते हुए कुछ अनियमितताएँ कीं, जिसके कारण 10.10.2022 को उस समय के उपमंडल अधिकारी द्वारा कारण बताओ सूचना-पत्र जारी किया गया और 24 घंटे के भीतर उत्तर देने का समय दिया गया, जिसमें यह उल्लेख था कि यदि समयावधि में उत्तर नहीं दिया गया तो एकपक्षीय कार्यवाही की जाएगी। याचिकाकर्ता ने 17.10.2022 को उक्त सूचना-पत्र का उत्तर दिया, जिसके बाद 20.10.2022 को उपमंडल अधिकारी द्वारा ‘मध्यप्रदेश सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण एवं अपील) नियम, 1966’ के नियम 10(4) के अंतर्गत दंड स्वरूप एक वेतनवृद्धि को स्थायी प्रभाव से रोकने का आदेश दिया गया, जिसे एक लघु दंड माना गया।

3. याचिकाकर्ता ने उक्त आदेश को कलेक्टर के समक्ष अपील के रूप में चुनौती दी, जिसे कलेक्टर ने 26.07.2024 को खारिज कर दिया और उपमंडल अधिकारी के आदेश को यथावत रखा। यह आदेश भी इस याचिका में चुनौती के अंतर्गत है।

4. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि यह आदेश स्पष्ट रूप से अवैध, मनमाना तथा वैधानिक प्रावधानों के विपरीत पारित किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि कारण बताओ सूचना-पत्र में यह उल्लेख नहीं था कि यह 1966 के नियमों के अंतर्गत जारी किया गया है, न ही यह स्पष्ट किया गया कि अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रारंभ की जा रही है। फिर भी नियमों के तहत दंड दे दिया गया। यह आदेश पूरी तरह असंवैधानिक है और कलेक्टर ने भी इस गंभीर तथ्य को नज़रअंदाज़ करते हुए आदेश पारित कर दिया।

5. न्यायालय ने प्रतिवादी पक्ष से पूछा कि किस कानून के तहत ऐसा आदेश पारित किया गया। उन्होंने कहा कि दंड लघु या प्रमुख दंड की श्रेणी में आता है, इसमें भ्रम हो सकता है, लेकिन कानून के अनुसार स्थायी प्रभाव से वेतनवृद्धि रोकना एक प्रमुख दंड है और इसके लिए नियमित विभागीय जांच आवश्यक होती है।

6. न्यायालय ने कहा कि इस याचिका में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि उपमंडल अधिकारी द्वारा मात्र 24 घंटे का समय देकर कार्यवाही की गई और फिर प्रमुख दंड दे दिया गया, जबकि कारण बताओ सूचना-पत्र में कहीं नहीं बताया गया कि यह कार्यवाही 1966 के नियमों के तहत हो रही है। यह न्यायसंगत नहीं है और कलेक्टर ने भी इसे नज़रअंदाज़ कर दिया, जो कि अस्वीकार्य है।

7. श्री अमित सेठ, प्रतिवादी के अधिवक्ता को निर्देशित किया गया कि वे इस स्थिति से सक्षम अधिकारी को अवगत कराएँ, ताकि उपयुक्त निर्देश जारी किए जा सकें और ऐसे अधिकारियों पर कार्रवाई हो जो कानून के अनुसार कार्य नहीं कर रहे हैं।

8. अतः, याचिका स्वीकार की जाती है। दिनांक 20.10.2022 (परिशिष्ट P/1) और 26.07.2024 (परिशिष्ट P/5) के आदेश रद्द किए जाते हैं। हालांकि, प्रतिवादी/प्राधिकरण को स्वतंत्रता दी जाती है कि यदि आवश्यक हो तो वैधानिक प्रक्रिया के अनुसार याचिकाकर्ता के विरुद्ध उपयुक्त कार्यवाही करें।

(संजय द्विवेदी)
न्यायाधीश

WP_24004_2024_FinalOrder_11-12-2024

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Shopping Cart