जबलपुर । मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि आधार कार्ड को केवल पहचान प्रमाण पत्र के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन यह आयु प्रमाण के रूप में मान्य नहीं है। यह निर्णय जस्टिस जी.एस. अहलूवालिया की एकलपीठ ने सुनाया। कोर्ट ने आदेश की प्रति राज्य के मुख्य सचिव को भेजकर सभी सरकारी अधिकारियों को इसके अनुपालन के निर्देश जारी करने के लिए कहा है।

यह आदेश नरसिंहपुर जिले की सिंहपुर पंचायत की सुनीता बाई साहू की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया गया। याचिका में कहा गया कि सुनीता बाई के पति मोहन लाल साहू की करंट लगने से मृत्यु हो गई थी। इसके बाद, सुनीता बाई ने मुख्यमंत्री जन कल्याण (संबल) योजना, 2018 के तहत आर्थिक सहायता के लिए आवेदन किया था, जिसे इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि उनके पति की आयु 64 साल से अधिक थी। हालांकि, आधार कार्ड में दर्ज जन्म तिथि के अनुसार, उनके पति की आयु 64 साल से कम थी।

अदालत ने इस मामले में कहा कि पंचायत ने अन्य दस्तावेजों के आधार पर मृतक की आयु 64 साल से अधिक मानते हुए आवेदन को खारिज करने में कोई गलती नहीं की। अदालत ने यूआईडीएआई के अगस्त 2023 में जारी परिपत्र का हवाला देते हुए कहा कि आधार कार्ड केवल पहचान के लिए है और यह जन्म तिथि का प्रमाण नहीं हो सकता। साथ ही, मध्यप्रदेश हाईकोर्ट सहित विभिन्न उच्च न्यायालयों ने भी इस बात पर सहमति जताई है कि आधार कार्ड को आयु प्रमाण के रूप में मान्यता नहीं दी जा सकती।

एकलपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि मुख्यमंत्री जन कल्याण (संबल) योजना, 2018 के वे प्रावधान जो आधार कार्ड में उल्लिखित जन्म तिथि के आधार पर आयु तय करते हैं, आधार कार्ड के मूल उद्देश्य के विपरीत हैं और इन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता। अदालत ने स्पष्ट किया कि आधार कार्ड एक पहचान दस्तावेज है जिसमें बायोमैट्रिक और आईरिस डेटा होते हैं, और इसे आयु सत्यापन के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।

यह फैसला आधार कार्ड की भूमिका को सीमित करते हुए इसके दुरुपयोग पर अंकुश लगाने का महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।

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