लोकायुक्त में रिश्वत मांगने की शिकायत करने में ग्रामीण निवासी, शहरी निवासियों से आगे

इंदौर। मध्यप्रदेश के ग्रामीण भले ही आर्थिक रूप से कमजोर हो सकते हैं, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी दृढ़ता और साहस अडिग है। शहरी नागरिकों की तुलना में वे कहीं अधिक शक्ति और संकल्प के साथ रिश्वतखोरी के खिलाफ आवाज उठाते हैं। अपनी मेहनत और प्रतिबद्धता के दम पर, ग्रामीण सैकड़ों किलोमीटर का सफर तय करते हुए भी लोकायुक्त के पास शिकायत दर्ज कराने से पीछे नहीं हटते। उनकी इसी दृढ़ता का नतीजा है कि भ्रष्ट अधिकारियों को गिरफ्तार करवाकर उन्होंने उदाहरण प्रस्तुत किया है।

इंदौर लोकायुक्त द्वारा पिछले 11 महीनों में 24 अधिकारी और कर्मचारी रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ पकड़े गए। इनमें से 79% गिरफ्तारियां ग्रामीणों की शिकायतों के आधार पर हुईं। इंदौर जिले में 24 में से 19 अधिकारी या उनके अधीनस्थ कर्मचारी ग्रामीणों की शिकायत पर गिरफ्तार किए गए, जबकि शहरी नागरिकों की शिकायत पर केवल 5 अधिकारियों की गिरफ्तारी हुई। लोकायुक्त एसपी डॉ. राजेश सहाय के अनुसार, ग्रामीण अपने क्षेत्र की समस्याओं को गहराई से समझते हैं और कार्रवाई के लिए एक ही बार में पूरा एक्शन प्लान बना लेते हैं, ताकि उन्हें बार-बार इंदौर आने की जरूरत न पड़े।

डीएसपी अनिरुद्ध वाधिया बताते हैं कि जब देपालपुर में एक राजस्व निरीक्षक को रंगेहाथ पकड़ा गया तो वहां बड़ी संख्या में ग्रामीण जमा हो गए। लोग अपने दस्तावेजों के साथ आने लगे और भ्रष्टाचार की शिकायतें करने लगे। खेतों के सीमांकन, फसल क्षति का सर्वे, और अन्य कार्यों के बदले रिश्वत मांगने वाले इस अधिकारी की गिरफ्तारी की खबर पर लोगों ने दफ्तर में ही तालियां बजाईं। इस घटना ने ग्रामीणों को भ्रष्टाचार के खिलाफ संगठित होकर आवाज उठाने की प्रेरणा दी।

यह सिर्फ राजस्व से जुड़े मामलों तक सीमित नहीं है, बल्कि ग्रामीण विकास कार्यों में भी भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूती से खड़े हैं। उमरबन जनपद पंचायत के सीईओ काशीराम पर भी रिश्वत मांगने का आरोप लगा था। उसके कार्यालय में गिरफ्तारी के दौरान भी ग्रामीणों का जमावड़ा लग गया, जिन्होंने उसे खूब खरी-खोटी सुनाई। ग्रामीण अब यह समझने लगे हैं कि सरकारी धन जनता का होता है, और इसे भ्रष्टाचार से बचाने के लिए उन्हें खुद आगे आना होगा।

यहां उन अधिकारियों और कर्मचारियों की सूची है जो ग्रामीणों की शिकायत पर लोकायुक्त द्वारा गिरफ्तार किए जा चुके हैं:

  1. हरिसिंह गुर्जर, आरक्षक, बाणगंगा थाना, इंदौर
  2. सुंदर सिंह बर्मन, लिपिक, कृषि विभाग, बड़वानी
  3. पीयूष चौकड़े, लिपिक, स्वास्थ्य विभाग, पालखाना (खंडवा जिला)
  4. काशीराम कानूड़े, सीईओ, जनपद पंचायत उमरबन (धार)
  5. जागृति जोशी, शिक्षिका, बड़वानी
  6. सौजन्य जोशी, एनजीओ संचालक, बड़वानी
  7. अभिषेक पांडे, प्राचार्य, सरकारी स्कूल, जोबट
  8. मुन्नालाल यादव, पंचायत समन्वयक, महू
  9. नरेश बिवालकर, राजस्व निरीक्षक, देपालपुर
  10. शीला मेरावी, जिला परियोजना समन्वयक, इंदौर
  11. राहुल मंडलोई, उपयंत्री, महेश्वर
  12. पुष्पेंद्र साहू, जूनियर इंजीनियर, इंदौर
  13. अजरूद्दीन कुरैशी, आउटसोर्स कर्मचारी, इंदौर
  14. मुकेश त्रिपाठी, अधीक्षक, जीएसटी खंडवा
  15. राजू हिरवे, रोजगार सहायक, खंडवा
  16. मनोज कुमार बैरागी, गंधवानी

मध्यप्रदेश के ग्रामीणों ने यह साबित किया है कि वे कमजोर नहीं हैं। उनके लिए भ्रष्टाचार असहनीय है, और वे इसे सहने की बजाय इसका पुरजोर विरोध करते हैं। सरकारी अधिकारियों द्वारा रिश्वत मांगने की घटनाओं पर वे न केवल सशक्त प्रतिक्रिया देते हैं, बल्कि रिश्वतखोरी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मिसाल भी पेश करते हैं। उनके इस साहसिक कदम ने ग्रामीण समाज में भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूकता बढ़ाई है, और यह भविष्य में पारदर्शिता और ईमानदारी को प्रोत्साहित करेगा।

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