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04/11/2024 Monday, Bhopal
भोपाल भारत में स्वामित्व योजना के अंतर्गत पहली बार ग्रामवासियों को उनकी संपत्ति पर संपूर्ण अधिकार का आधिकारिक प्रमाण पत्र प्रदान किया जा रहा है, जिससे वे न केवल अपनी संपत्ति का क्रय-विक्रय कर सकते हैं, बल्कि इसे गिरवी रखकर बैंकों से ऋण भी प्राप्त कर सकते हैं। यह योजना 24 अप्रैल 2020 को लागू की गई थी, और अब सभी राज्यों में इसके तेजी से कार्यान्वयन पर जोर दिया जा रहा है। इस योजना को सफलतापूर्वक लागू करने में मध्य प्रदेश अग्रणी राज्य बनकर उभरा है, जहाँ 56 हजार गाँवों में से 40 हजार 500 गाँवों में ड्रोन सर्वेक्षण का कार्य पूरा कर लिया गया है और अब तक 9 लाख 37 हजार अधिकार अभिलेख ग्रामीणों को वितरित किए जा चुके हैं।
आज कुशाभाऊ ठाकरे कन्वेंशन सेंटर में स्वामित्व योजना और ग्रामीण नियोजन पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन में यह जानकारी दी गई। कार्यशाला का शुभारंभ भारत सरकार के पंचायती राज मंत्रालय के सचिव श्री सुनील कुमार द्वारा दीप प्रज्ज्वलन के साथ हुआ। इस कार्यशाला में 20 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों से लगभग 150 पंचायत प्रतिनिधि, पंचायत एवं ग्रामीण विकास अधिकारी, और राजस्व विभाग के अधिकारी शामिल हुए। इस अवसर पर स्वामित्व योजना और ग्रामीण नियोजन पर विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट का विमोचन भी किया गया, जिसकी विस्तृत प्रस्तुति पंचायती राज मंत्रालय के संयुक्त सचिव श्री एपी नागर ने दी।
श्री सुनील कुमार ने इसे एक क्रांतिकारी योजना बताया, जो ग्रामीण क्षेत्रों में व्यापक आर्थिक और सामाजिक बदलाव लाएगी। उन्होंने कहा कि स्वामित्व योजना ग्रामीणों की संपत्ति को पूंजी में बदलने का एक सशक्त माध्यम है, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण साबित होगी। मध्य प्रदेश में इस योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए उन्होंने सराहना भी की।
राजस्व विभाग के सचिव श्री संजय गोयल ने जानकारी दी कि मध्य प्रदेश में इस योजना का कार्य दिसंबर तक पूर्ण होने की ओर है। आधुनिक ड्रोन तकनीक का उपयोग कर ग्रामीण क्षेत्रों का सर्वेक्षण कर अधिकार अभिलेख तैयार किए जा रहे हैं, जो लैंड रिकॉर्ड्स पोर्टल पर भी उपलब्ध हैं। अब तक 11 हजार 600 गाँवों में अधिकार अभिलेखों का प्रकाशन किया जा चुका है, जिससे ग्रामीणों को उनकी संपत्ति के लिए कानूनी वैधता के साथ अधिकार दस्तावेज प्रदान किया जा रहा है।
जशदा संस्था, पुणे के डीडीजी श्री एस. चोकलिंगम ने ग्रामीण भूमि सर्वेक्षण के महत्व पर जोर देते हुए बताया कि चाहे वह आबादी की भूमि हो या खेत, इसका सर्वेक्षण आवश्यक है। यदि ग्रामीण क्षेत्र में लोग लंबे समय से निवास कर रहे हैं तो उसे आबादी भूमि के रूप में घोषित किया जाना चाहिए। इसके लिए निजी भूमि पर 12 वर्ष और सरकारी भूमि पर 30 वर्ष की सीमा निर्धारित की गई है।
कर्नाटक के कमिश्नर सर्वे, सेटलमेंट एंड लैंड रिकॉर्ड्स श्री मनीष मोद्गिल ने कहा कि ग्रामीणों को संपत्ति का अधिकार देने का यह एक कानूनी तरीका है, जिससे पहली बार सर्वेक्षण होने वाले क्षेत्रों में लोगों को उनके निवास की भूमि का अधिकार दिया जा सकेगा। वहीं, असम के डायरेक्टर लैंड रिकॉर्ड्स श्री शांतनु गोटमारे ने कहा कि देश के विभिन्न हिस्सों में भूमि स्वामित्व की अवधारणा अलग-अलग है, जैसे अरुणाचल प्रदेश में सामुदायिक स्वामित्व का प्रावधान है। उन्होंने सुझाव दिया कि भूमि पर स्वामित्व देने के बाद इसे कर से न जोड़ा जाए, ताकि ग्रामीणों पर अतिरिक्त आर्थिक दबाव न पड़े।
स्वामित्व योजना भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में संपत्ति के स्वामित्व का अधिकार प्रदान कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से एक अहम प्रयास है, जो न केवल ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति को सशक्त बनाएगा, बल्कि समाज में एक स्थायी बदलाव लाने में भी सहायक होगा।