HC_on_MPLRC_165(6-A)

मामला

  • याचिकाकर्ता: हरीश
  • प्रतिवादी: मध्यप्रदेश राज्य एवं अन्य

हरीश ने खण्डवा जिले (खरगोन) में ज़मीन खरीदी थी और उसे आवासीय कॉलोनी बनाने हेतु कॉलोनाइज़र लाइसेंस व विकास की अनुमति मिल चुकी थी। काम पूरा करने के बाद जब उन्होंने कम्प्लीशन सर्टिफिकेट के लिए आवेदन किया तो कलेक्टर खरगोन ने सर्टिफिकेट देते समय शर्त क्रमांक 5 लगाई — कि याचिकाकर्ता को धारा 165 (6-a), मध्यप्रदेश भू-राजस्व संहिता 1959 के तहत अनुमति लेनी होगी।

हरीश ने इस शर्त को अदालत में चुनौती दी।


याचिकाकर्ता का पक्ष

  • ज़मीन शहरी क्षेत्र (नगर पालिका सीमा) में है, कृषि भूमि नहीं है।
  • गैर-कृषि उपयोग हेतु पहले ही डायवर्जन हो चुका है।
  • शहरी क्षेत्र की ज़मीन पर धारा 165 (6) लागू नहीं होती।
  • इसलिए कलेक्टर द्वारा लगाई गई शर्त अवैध है।

राज्य का पक्ष

  • खरगोन जिला अनुसूचित जनजाति क्षेत्र (Scheduled Tribe Area) घोषित है।
  • ऐसे क्षेत्रों में ज़मीन की खरीद-फरोख्त पर आदिवासी अधिकारों की रक्षा के लिए नियंत्रण है।
  • इसलिए चाहे शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण, धारा 165 (6-a) लागू होती है और कलेक्टर से अनुमति ज़रूरी है।

न्यायालय का निर्णय

  • यह स्वीकार किया गया कि ज़मीन नगर पालिका सीमा के भीतर शहरी क्षेत्र में है।
  • पहले के निर्णयों (जैसे Mohebe Infrastructure बनाम मध्यप्रदेश राज्य) में स्पष्ट किया गया है कि यदि भूमि शहरी क्षेत्र में है तो धारा 165 (6) लागू नहीं होगी।
  • कलेक्टर के आदेश में यह कहीं नहीं लिखा था कि ज़मीन अनुसूचित क्षेत्र में होने के कारण अनुमति चाहिए।
  • आदेश की वैधता केवल उसी आधार पर जाँची जा सकती है जो उसमें लिखा हो, बाद में अतिरिक्त कारण देकर उसे सही नहीं ठहराया जा सकता।
  • राज्य यह भी स्पष्ट नहीं कर पाया कि अनुसूचित क्षेत्र होने पर धारा 165 (6-a) क्यों लागू होगी।

निष्कर्ष

  • कलेक्टर, खरगोन द्वारा कम्प्लीशन सर्टिफिकेट में लगाई गई शर्त क्रमांक 5 अवैध और अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
  • इसलिए न्यायालय ने उसे रद्द (quash) कर दिया।
  • याचिका स्वीकार कर निपटा दी गई।

👉 सरल शब्दों में: कोर्ट ने कहा कि शहरी क्षेत्र की ज़मीन पर धारा 165 (6-a) लागू नहीं होती। इसलिए कलेक्टर द्वारा लगाई गई अतिरिक्त शर्त गैरकानूनी थी और उसे हटा दिया गया।

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